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9.12.09

Random Shayri - II

तेरी ज़ुल्फो की सियाही मैं पूरी रात बसर कर जाउ
जागने का सबब हो तो ये के तेरा दीदार कर पाउ

आँधियों मैं पत्तो के मानिंद, तेरी गर्म सांसो मैं बिखर जाउ
गर कहीं मुकाम पाउ तो तेरी ठंडी आहों मैं बस जाउ

सरक़शी है इश्क़ मैं मेरी इतनी के खुद की हयाती भूल जाउ
चाहत ये भी है की तेरे गुलाबी होठों पे तिल का नुक़्स बन के रह जाउ

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